गुरुवार, 17 जुलाई 2008

कश्‍मकश

कभी कभी,

ऐसा लगता है ,

कि जैसे,

मैं कहीं खो गई हूं,

किसी और की हो गई हूं।

फिर सहसा ध्‍यान जाता है,

उन पर,

जो मेरे अपने है,

जिनकी आंखों में ,

मुझे लेकर कुछ सपने हैं,

बढ़ता कदम रूक जाता है,

दिल मेरा टूट जाता है।

एक अजीब कश्‍मकश में,

जी रही हूं,

सच,

घूंट जहर के,
पी रही हूं।

(अनिता शर्मा)

जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ...

जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम कि‍स्से मुझे फि‍र से सुनाना. और पूछना मुझसे क‍ि हुआ कुछ ऐस...