ऐसा लगता है ,
कि जैसे,
मैं कहीं खो गई हूं,
किसी और की हो गई हूं।
फिर सहसा ध्यान जाता है,
उन पर,
जो मेरे अपने है,
जिनकी आंखों में ,
मुझे लेकर कुछ सपने हैं,
बढ़ता कदम रूक जाता है,
दिल मेरा टूट जाता है।
एक अजीब कश्मकश में,
जी रही हूं,
सच,
घूंट जहर के,
पी रही हूं।
(अनिता शर्मा)