जब पहली बार
''तुम मुझे पसंद हो''
न जाने क्यों
खुद का समेट
एक खोल में
ढ़क लिया था
पर सुनो...
निशब्द हूं मैं
तुम्हारी दोस्ती पाकर
तुम हो बिखरी गंध से
जिसे कभी छूकर खुद में समा लेना चाहा मैंने
तुम हो कुछ सिमटे से...
जिसे उधेड़कर फिर बुनना चाहा मैने,
पर सुनो
निशब्द हूं मै...
तुम्हारा साथ पाकर