रास्ते कहीं खत्म नहीं होते, हम एक बार अपनी मंजिल को छू लें,लेकिन ये भी सच है कि एक रास्ता पार होते ही दूसरी राह बाहें फैलाए हमारा स्वागत करने को तैयार होती है। बस देर इस बात की है कि हम जो मंजिल पा चुके है उसका मोह त्याग कर नए रास्ते को अपना लें...
मंगलवार, 23 अगस्त 2011
ओह मेरे सूनेपने...
ओह मेरे एकाकीपन,
ओह मेरे सूनेपने...
अब लगता है कि बहुत हुआ,
बहुत हुआ ये दीवानापन,
बहुत हुआ स्नेह,
प्रेम और सहवास,
जी भर गया अब
इन दूषित हो चुके भावों से,
जी है कि जूझा जाए
फिर इनके आभावों से,
मन है कि नष्ट हो जाए,
संपूर्ण सृष्टि,
शेष बचूं मैं और मेरा अकेलापन,
ओह मेरे एकाकीपन...
ओह मेरे सूनेपने...
गुरुवार, 21 जुलाई 2011
क्योंकि मैं आधुनिक हूँ...
मु्झे देखिए,
परखिए और पंसद आने पर
चुन लीजिए,
आप लगा सकते है मेरी बोली,
अरे घबराएं नहीं,
यदि आप पुरुष हैं तो कतई नहीं,
मेरी बोली आपकी जेब पर नहीं पडेंगी भारी,
मैं तो बस आपसे चाहती हूं कुछ झूठे वादे,
कुछ दगा और कुछ कटु शब्दों के पक्के धागे,
कहिए कि आप मुझे प्यार करते हैं,
गर आप चाहते हैं मेरे हाथों को चूमना,
कहें एक ठहाके के साथ कि आप मेरे बिना जी नहीं सकते
और छू लीजिए मेरी कमर को,
और इच्छाएं कुछ ज्यादा ही हैं,
तो करें एक और झूठा वादा,
शादी का,
फिर देखिए कैसे मैं बिझ जाऊंगी आप के नीचे,
घबराएं नहीं मेरी बोली में केवल बंधन नहीं है,
आप सहजता से पा सकते हैं मुक्ति भी,
क्योंकि मैं हूं आधुनिक नारी,
बस कह दें कि नहीं हो सकती शादी,
जरा से उल्हाने दें मेरी पढ़ाई और आधुनिकता के,
बस मैं तैयार हो जाऊंगी किसी और के लिए...
सोमवार, 3 जनवरी 2011
ये मेरी भावनाएं...
सुनों ये मृदु हैं,
सोम्य, नर्म और बुद्धिहीन हैं.
इन्हें देखो
ये मेरी भावनाएं हैं.
अरे-अरे छूओ नहीं,
कुछ कमजोर भी हैं ये.
तुम बस इन्हें देखो...
देखो कुछ देर यूं ही,
क्योंकि वे जरा संकोची भी हैं,
लचीली और बेहद कोमल,
महसूस करो इनकी
मृदुलता को, सोम्यता को
और,
अट्हास करो इनकी बुद्धिहीनता का...
अंत में इन्हें छूना,
इनसे खेलना,
इन्हें चूमना,
तोड़-मरोड़ कर इनके बदन को,
कर देना इनका बलात्कार,
वह भी एक नहीं,
कई कई बार,
ताकि ये डर, सहम कर जाएं बैठ
कोने में कहीं,
और दोबारा न कर पाएं
किसी पुरुष संग जुड़ने का दुस्साहस...
अनिता शर्मा
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