जब पहली बार
''तुम मुझे पसंद हो''
न जाने क्यों
खुद का समेट
एक खोल में
ढ़क लिया था
पर सुनो...
निशब्द हूं मैं
तुम्हारी दोस्ती पाकर
तुम हो बिखरी गंध से
जिसे कभी छूकर खुद में समा लेना चाहा मैंने
तुम हो कुछ सिमटे से...
जिसे उधेड़कर फिर बुनना चाहा मैने,
पर सुनो
निशब्द हूं मै...
तुम्हारा साथ पाकर
9 टिप्पणियां:
सचमुच भावनाओं को शब्दों में बयान करना कोई आप से सीखे ....और फिर कहे निशब्द हूँ में .....
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर कविता!
sunder. kripya thoda aur vistaar den to padhne ka anand kuchh der aur jaari rahe.
सुन्दर !
घुघूती बासूती
भावपूर्ण रचना.
sneh nihshabd kar hi deta hai....bahut sundar likha hai aapne.
kavita bahut sundar hai lekin usse bhi sundar aapki profile ki yah panktiyaan :
एक आस लिए जीती हूं, एक प्यास जिसे पीती हूं, न जाने क्यूं, मन में एक विश्वास लिए हूं, फिर भी रीती हूं।
beautiful poems...bhavnaon ka yeh gahara khaulta samunder mubark....amarjeet kaunke
भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
blog description भी बहुत सुन्दर लिखा है आपने
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