
आत्महत्या का नाम न देना
यह तो एक कत्ल है
इस की शिनाख्त करवाना...
समाज के
हर उस ठेकेदार को
इस की सजा दिलवाना
जो मेरी आजादी पर
अपने नियमों का
पहरा दिए रहता था...
हर उस शख्स पर
जुर्माना लगाना
जिस ने मेरे अरमानों को
सहला सहला जवां किया
और परंपराओं की वेदी पर
नग्न कर शोषित किया
उस खास शख्स को
यातना जरूर देना
जिसने झूठे वादों की सेज पर
बार बार मेरा बलात्कार किया...
और हां
अंत में
यह घोषण करना न भूलना
कि
यह आत्महत्या नहीं थी
यह कत्ल था
वह भी अनजाने में नहीं
बल्कि
एक सोच समझी साजिश के तहत...
17 टिप्पणियां:
आपकी रचना में कटु सत्य है।
सुन्दर रचना मौत की।
एक सोच समझी साजिश के तहत...
आमतौर पर यही माना और समझा जाता है कि कोई कवि जब पत्रकार हो जाता है तो उसके भीतर उमड़ने वाली कविताएं सख्त होती चली जाती हैं। एक पत्रकार होकर आप इतनी सुंदर और भावविभोर करने वाली कविताएं लिख पा रही हैं। बधाई।
Gud yarrr......
very gudddd......
Isme toh aapne Dil hi khol kr rkh diya hai...:-)
yah hui na kuch khas bat
pasand aai aap ki ye kavita
waqay me bahut sundar
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
yah hui na kuch khas bat
pasand aai aap ki ye kavita
waqay me bahut sundar
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
तल्ख स्वर है
आक्रोश जायज है
एक सच्ची कडवाहट झलकती है आपके शब्दों में
kya kahun....marm tak utar gayi...!!
bhutnaath ji,seema ji, or verma ji ne mere man ki baat keh di hai!
kunwar ji,
रचना के बारे में तो सबने कुछ न कुछ कह ही दिया है इसलिए मैं आपसे ब्लोग शीर्षक के बारे में कुछ कहना चाहूंगा । आपने शीर्षक में जानबूझ कर रास्ते को अलग तरह से लिखा है या कि ..मैं ही नहीं समझ पा रहा हूं ठीक से ..। आपका फ़ौलोवर वाला विजेट भी नहीं दिख रहा है ..अब अनुसरण कहां किया जाए । बहरहाल बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको
अजय कुमार झा
पढ़ कर लगा कोई दिल को भींच रहा हो
कुछ है जो मर्म को छू गया
bahut dinon baad koi achchhi kavita padhne ko mili
abhar..
सलाम करता हूं बेबाक कलम को।
यह आत्महत्या नहीं थी
यह कत्ल था
वह भी अनजाने में नहीं
बल्कि
एक सोच समझी साजिश के तहत...
.....रचना सत्य है।
बहुत ही मार्मिक कविता है, समाज के मुह पर एक तमाचा!
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