शनिवार, 4 सितंबर 2010

निरक्षर हाथों का जोडा

रोज देखती हूं
एक निरक्षर हाथों का जोडा
दिल्‍ली की हर रेड लाइट पर
बेच रहा होता है
साक्षरता का पहला ‘अक्षर’
इस जोडे को शायद
जमा घटा का ज्ञान नहीं
किंतु एक रुपय की कीमत
भली भांती ज्ञात है
मैला सिर, मैले लत्‍ते,
और मैली आंखों में चमकता वो शुद्ध मन...
मुझे रोज याद दिलाता है
कि
वह मेरे साक्षर हाथों का श्रष्‍टा है...
इसलिए ही कहती हूं
जब कभी
अपनी साक्षरता का पर गुरुर हो,
दौड कर उस रेड लाइट पर जाएं
और देखें
आपके हाथों को साक्षर बनाने वाले
वो नन्‍हें हाथों का जोडा
आज भी उसी चौराहे पर
10 रुपय के जोडे के हिसाब से
पैंसिलें बेच रहा है
वही पैंसिल
जिसे पकड
आपने पहला अक्षर लिखा था...

अनिता शर्मा

16 टिप्‍पणियां:

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhn vshishtta ji nirkshr ji jode ko aap dekhti hen hari srkaaron ne unhen saakshr krne ke naam pr arbon rupye kaa ghotaala kr rkhaa he . aapne choraahe or red laait kaa achcha jivnt chitrn kiyaa he bdhayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

सुन्दर कविता है जी

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत संवेदनशील रचना ...

Udan Tashtari ने कहा…

मर्मस्पर्शी रचना.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

सच कहा .सुंदर अभिव्यक्ति.

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

Very touching....and an eye opener.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत संवेदनशील रचना ... काश गरूर की जगह उस निरक्षर को साक्षर बनाने की प्रक्रिया शुरू हो तो कितना अच्छा हो ....

हरीश प्रकाश गुप्त ने कहा…

सुन्दर कविता।

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

vashistha ji

aapne bhaoot sachhi hakiquat bayan ki hai.......

upendra ( www.srijanshikhar.blogspot.com )

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

रास्‍ते खत्‍म नहीं होते...

blog ka chitra bahoot hi jiwant chitra. bahoo achchha laga.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

http://charchamanch.blogspot.com/2010/09/270.html

yahan bhi apni post dekhen ..

nilesh mathur ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति, संवेदनशील रचना!

शरद कोकास ने कहा…

कविता सुन्दर है । इसमे विचार बहुत तीव्रता के साथ उभर कर आ रहा है लेकिन कविता मे लय नही बन पा रही है । इसे सस्वर पाठ करे और कुछ शब्दो को इधर उधर करे । शिल्प ठीक हो जायेगा तो बेहतर लगेगी ।

बेनामी ने कहा…

लम्बे अंतराल के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ - मार्मिक रचना के लिए बधाई

निर्झर'नीर ने कहा…

आपकी ये रचना बहुत अच्छी और प्रभावी लगी

आशीष "अंशुमाली" ने कहा…

वर्तनी त्रुटियां अखरती हैं.. कृपया दुबारा देख लिया करें.. गरीब एक रुपये होने की कीमत आंक रहा है और अमीर एक रुपये कम होने की कीमत चुका रहा है..

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जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम कि‍स्से मुझे फि‍र से सुनाना. और पूछना मुझसे क‍ि हुआ कुछ ऐस...