कागज पर
खाली रेखाओं से बिखरे तुम कभी कभी
मेरे लिखने का आधार बन जाते हो...
होठों पर
आड़ी तिरछी लकीरों से चिपके तुम
कभी सहसा... मुझे छूकर चले जाते हो...
मन के किसी कोने में
सदा सहमे से बैठे रहते हो
कि, जैसे मैने तुम्हें अभी अभी
डांटा हो,
अक्सर जब
धड़कन रुक जाती है तो अहसास होता है
कि तुम अब भी चल रहे हो
रक्त वाहिकाओं में कहीं... और तुम्हारा यूं रेंगना
मुझे सिहरन सी दे जाता है।
(अनिता शर्मा)
रास्ते कहीं खत्म नहीं होते, हम एक बार अपनी मंजिल को छू लें,लेकिन ये भी सच है कि एक रास्ता पार होते ही दूसरी राह बाहें फैलाए हमारा स्वागत करने को तैयार होती है। बस देर इस बात की है कि हम जो मंजिल पा चुके है उसका मोह त्याग कर नए रास्ते को अपना लें...
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6 टिप्पणियां:
अनीता जी मन की उथल पुथल को आपने बहुत सुंदर तरीके से कविता में उतारा है .....बधाई
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बहुत अच्छा लिखा आपने
सचमुच कुछ चीजे आंखों से दूर मगर दिल के पास होती है..
सारी कशमकश खूबसूरती से शब्दों की शक्ल अख्तियार करती,,,,
बहुत ख़ूब
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गुलाबी कोंपलें
बहुत सुंदर लिखा....
कोमाल भावों के अनुरूप कोमल शब्द.....बहुत बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.वाह !!
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