जरा उठो,
और अपने सिरहाने तक जाओ,
वहां जो तुम्हारे बिस्तर पर सिलवटें पड़ी हैं,
वो सिर्फ तुम्हारी नहीं हैं,
वहां से कुछ दूरी पर,
चूड़ी का एक टूटा टुकड़ा पड़ा है,
वो भी सिर्फ मेरा नहीं है,
अकसर लोग जुदा होने पर,
अपनी चीजें मांगते हैं,
पर मैं,
तुमसे कुछ नहीं मांगूंगी,
क्योंकि,
वो चीजें न सिर्फ मेरी हैं,
और न ही सिर्फ तुम्हारी,
वो सभी चीजें और पल हमारे हैं,
और जब हम कहीं खो गया,
तो जान लो,
कि वो अनमोल चीजें,
अब लावारिस हो चुकी हैं,
अब खड़े क्या हो,
उठो और उन्हें उठाकर...
घर से बाहर फेंक दो...
(अनिता शर्मा)
और अपने सिरहाने तक जाओ,
वहां जो तुम्हारे बिस्तर पर सिलवटें पड़ी हैं,
वो सिर्फ तुम्हारी नहीं हैं,
वहां से कुछ दूरी पर,
चूड़ी का एक टूटा टुकड़ा पड़ा है,
वो भी सिर्फ मेरा नहीं है,
अकसर लोग जुदा होने पर,
अपनी चीजें मांगते हैं,
पर मैं,
तुमसे कुछ नहीं मांगूंगी,
क्योंकि,
वो चीजें न सिर्फ मेरी हैं,
और न ही सिर्फ तुम्हारी,
वो सभी चीजें और पल हमारे हैं,
और जब हम कहीं खो गया,
तो जान लो,
कि वो अनमोल चीजें,
अब लावारिस हो चुकी हैं,
अब खड़े क्या हो,
उठो और उन्हें उठाकर...
घर से बाहर फेंक दो...
(अनिता शर्मा)
7 टिप्पणियां:
अनीता जी मैं क्या तारीफ करून आपकी इस रचना की ... इसका एक एक शब्द आपकी लेखनी की तारीफ कर रहा है ......भावनाएं भरी हुई हैं इसमें
गुलजार का गीत मेरा कुछ सामान याद आ गया।
बहुत खूब... बहुत अच्छा लिखा है आपने। सही बात है, साथ रहने पर जो यादें, जो चीजें हमारे साथ जुड़ती हैं उन्हें लौटाने का कोई अर्थ नहीं। वो चीजें आपके उस प्यारे से रिश्ते की खूबसूरत और अच्छी बातें याद दिलाती हैं। अच्छा लिखती हैं, लगातार लिखती रहें।
gehre bhav sunder rachana badhai
उठो और उन्हें उठाकर...
घर से बाहर फेंक दो...
क्या बात है! बहुत सुन्दर...
और जब हम कहीं खो गया,
तो जान लो,
कि वो अनमोल चीजें,
अब लावारिस हो चुकी हैं,
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कितनी सहजता से आपने इतने गहरे भाव की अभिव्यक्ति की है.
कमाल की पंक्तिया और भाव है!
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