रास्ते कहीं खत्म नहीं होते, हम एक बार अपनी मंजिल को छू लें,लेकिन ये भी सच है कि एक रास्ता पार होते ही दूसरी राह बाहें फैलाए हमारा स्वागत करने को तैयार होती है। बस देर इस बात की है कि हम जो मंजिल पा चुके है उसका मोह त्याग कर नए रास्ते को अपना लें...
शनिवार, 25 अप्रैल 2009
तेरे ख्वाबों के तिनके
तुझे भूलते भूलते तुझमें ही कहीं खो जाती हूं मैं
हर वक्त तेरी यादों पे मिट~टी डाल देती हूं
पर अगले ही पल उसकी छांव में खुद को सोया हुआ पाती हूं मैं
खंजर ए जुदाई को सिने से निकाल देती हूं,
पर अगले ही पल खुद को लहूलुहान पाती हूं मैं
दूर होकर भी छीपा है तू मुझमें ही कहीं
हर वक्त तेरी सांसों की आहट से सिहर जाती हूं मैं
घर की दीवारों से बातें किया करती हूं
सपनों की हकीकत में कहीं एक जिंदगी जी जाती हूं मैं
रोज तेरे ख्वाबों की उम्मीद लिए सोती हूं
पर उठने पर ख्वाबों के तिनकों को बिखरा पाती हूं मैं
सोचती हूं दरवाजे पर दस्तक दी है तुने
पर बाहर जाने पर बस तेरी उम्मीद को खडा पाती हूं मैं
अनिता शर्मा
बुधवार, 22 अप्रैल 2009
सबब

तेरे इकरार ए मुहब्बत में,
मुझे बेघर सा कर दिया है,
अपने ही घरोंदे से।
दर बदर भटक रही हूं,
कि कोई तो आशियां मिलेगा इस जमाने में।
आशियां न सही दिल को बहला लूंगी मैं,
तेरे दिल के बस छोटे से कोने में।
बस एक बार इतना बता दे,
के कितना यकीन करूं,
तेरे बेवफा न होने में।
हर जख्म को छिपा कर रख सकती हूं,
हंसी के दामन में,
पर,
उस वक्त जब हंसी ही जख्म बन जाएगी,
तो जाने क्या मजा होगातेरे कांधे पर सर रखकर रोने में।
जानती हूं ज्यादा न सही थोडा ही,
पर दर्द तो जरूर होगा तेरे भी सीने में।
तुम्हारी अनु
जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ...
जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम किस्से मुझे फिर से सुनाना. और पूछना मुझसे कि हुआ कुछ ऐस...
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जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम किस्से मुझे फिर से सुनाना. और पूछना मुझसे कि हुआ कुछ ऐस...
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वक्त-बेवक्त, हर वक्त, इंतजार रहता है, उंगलियों के पोरवों पर, हवा सा यार रहता है, वो रातें महसूस होती हैं लबों के सिरों पर, सिलवटों का...
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कागज पर खाली रेखाओं से बिखरे तुम कभी कभी मेरे लिखने का आधार बन जाते हो... होठों पर आड़ी तिरछी लकीरों से चिपके तुम कभी सहसा... मुझे छूकर चले ...