तेरे इकरार ए मुहब्बत में,
मुझे बेघर सा कर दिया है,
अपने ही घरोंदे से।
दर बदर भटक रही हूं,
कि कोई तो आशियां मिलेगा इस जमाने में।
आशियां न सही दिल को बहला लूंगी मैं,
तेरे दिल के बस छोटे से कोने में।
बस एक बार इतना बता दे,
के कितना यकीन करूं,
तेरे बेवफा न होने में।
हर जख्म को छिपा कर रख सकती हूं,
हंसी के दामन में,
पर,
उस वक्त जब हंसी ही जख्म बन जाएगी,
तो जाने क्या मजा होगातेरे कांधे पर सर रखकर रोने में।
जानती हूं ज्यादा न सही थोडा ही,
पर दर्द तो जरूर होगा तेरे भी सीने में।
तुम्हारी अनु
6 टिप्पणियां:
वाह !! मोहब्बत की इन्तहा बयां कर दी आपने..... लाजवाब.
बहुत सुंदर भाव .. अच्छी रचना .. बधाई।
अच्छी कविता है.
इस रचना को सिर्फ महसूस किया जा सकता है-ये शब्द नहीं..अहसास हैं.
ये मोहब्बत भी कितनी प्यारी बाला है ......अब देखो आपकी इस मोहब्बत भरी कविता में हम डूब गए
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
Anita ji,
Aapki nazm padhi...accha likhti hain aap....swagat hai.....!!
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