
छीन लो आज मुझसे
मेरा यह भय,
हो जाओ सदा के लिए
कहीं गहन अंधकारमय,
नित क्षणप्रतिक्षण
तुमसे दूर होने का,
यह निर्बाध भय,
निस्वार्थ सा बढ़ता है,
मुझमें अक्षय
बना लो दूरियां मुझसे,
तुम हो निर्भय
न घबराओ परिणाम से
कदाचित तय है
मेरे अस्तित्व का क्षय
क्योंकि मैं स्वयं ही
स्वीकार चुकी हूं,
तुमसे,
मेरा यह भय,
हो जाओ सदा के लिए
कहीं गहन अंधकारमय,
नित क्षणप्रतिक्षण
तुमसे दूर होने का,
यह निर्बाध भय,
निस्वार्थ सा बढ़ता है,
मुझमें अक्षय
बना लो दूरियां मुझसे,
तुम हो निर्भय
न घबराओ परिणाम से
कदाचित तय है
मेरे अस्तित्व का क्षय
क्योंकि मैं स्वयं ही
स्वीकार चुकी हूं,
तुमसे,
अपनी स्नेहमयी पराजय...
अनिता शर्मा
अनिता शर्मा
5 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर रचना। मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति
स्नेहमय पराजय की स्वीकार
वाह बहुत खूब
अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
सुंदर अभिव्यक्ति
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामाएं ...
शुक्रिया!
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