शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

नियती

मेरी कलम,
आज अजीब जीद कर रही है,
लंबी सी है,
फन उठाए बार बार मुझे डस रही है,
कहती है,
तुम्हारे बारे में नहीं लिखेगी,
अवहेलना के तीखें दंश,
और नहीं सहेगी...
नासमझ है
मुंह पर पुते,
कीचड़ को,
कागज पर रगड़ उतारने से,
मना जो कर रही है...

अब तुम ही समझाओ इसे
कि अवहेलना ही सही,
पर तुम्हारा दिया कुछ तो है,
इसके बेचारगी भरे जीवन में,
जो इस के नग्न शरीर पर,
वस्त्र सा पड़ा रहता है,
दुखता हो तो भी क्या,
अवहेलना सहसह कर
मुंह उठाए फिरफ़िर
तुम्हारी ओर दौड़ना,
यही तो इस की नियती है।

(अनीता शर्मा)

8 टिप्‍पणियां:

शारदा अरोरा ने कहा…

नहीं लिखेगी कह कर भी ये उसी को लिख रही है , हाय ये मन की कमजोरी , नेह के हाथों ये मजबूरी |

के सी ने कहा…

बेहद सुंदर
मन के समर्पण और व्यथित ह्रदय को कुछ शब्दों में यूं ही व्यक्त किया जा सकता है.

राजीव रंजन ने कहा…

नियति
मेरी कलम,
आज अजीब जिद कर रही है,
लंबी सी है,
फन उठाए बार बार मुझे डस रही है,
कहती है,
तुम्हारे बारे में नहीं लिखेगी,
अवहेलना के तीखे दंश,
और नहीं सहेगी...
नासमझ है
मुंह पर पुते,
कीचड़ को,
कागज पर रगड़ उतारने से,
मना जो कर रही है...

अब तुम ही समझाओ इसे
कि अवहेलना ही सही,
पर तुम्हारा दिया कुछ तो है,
इसके बेचारगी भरे जीवन में,
जो इस के नग्न शरीर पर,
वस्त्र सा पड़ा रहता है,
दुखता हो तो भी क्या,
अवहेलना सहसह कर
मुंह उठाए फिर फ़िर
तुम्हारी ओर दौड़ना,
यही तो इस की नियति है।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।

अब तुम ही समझाओ इसे
कि अवहेलना ही सही,
पर तुम्हारा दिया कुछ तो है,
इसके बेचारगी भरे जीवन में,

neeraj bharadwaj ने कहा…

aap achha likh rahi he. meri or se shubhkamnayain

Digpal Singh ने कहा…

बेहतरीन लि‍खा है दोस्‍त, सच ही कहा है कि‍सी ने कि‍ दर्द ही कवि‍ता की जनक होता है। तुम्‍हें इस तरह से अपने दर्द को बयान करते अच्‍छा लगता है, क्‍योंकि‍ अगर दर्द को बयान न कि‍या जाए तो ये एक मर्ज बन जाता है जो तुम्‍हारी जान ले सकता है और दुनि‍या से एक बेहतरीन कवि‍ता। इसलि‍ए दर्द को जुबां देती रहो, जब हद से बढ जाए तो याद रखना दि‍गपाल सि‍ंह है तुम्‍हें कांधा देने को, फि‍र जी भर के रो लेना।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

बेनामी ने कहा…

kya baat hai jee

जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ...

जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम कि‍स्से मुझे फि‍र से सुनाना. और पूछना मुझसे क‍ि हुआ कुछ ऐस...