के मैं तुम्हें न जी सकी,
मुझे तोड़ देना संघर्ष
के मैं तुम्हें न सह सकी...
झूठी परंपराओं की वेदी पर...
अपने नेह को घोट पाना
कितना मुश्किल है
मेरे नेही
तुमने भला कब जाना
इस से तो अच्छा है
पिघल कर घुल जाउं,
लिप्त हो जाउं
तुम में
तुम्हारी प्राण वायु में
खो जाउं वाष्प सी कहीं
कि लौट कर
वापस न आ पाऊं
इस बेचैन आयु में...
वापस न आ पाऊं
इस बेचैन आयु में...