काश कि
मैं पत्थर होती
कोई मूर्तिकार आता...
और मुझ पर
गढ़ जाता
तुम्हारे नाम का पहला अक्षर।
रास्ते कहीं खत्म नहीं होते, हम एक बार अपनी मंजिल को छू लें,लेकिन ये भी सच है कि एक रास्ता पार होते ही दूसरी राह बाहें फैलाए हमारा स्वागत करने को तैयार होती है। बस देर इस बात की है कि हम जो मंजिल पा चुके है उसका मोह त्याग कर नए रास्ते को अपना लें...
मंगलवार, 6 अप्रैल 2010
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जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ...
जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम किस्से मुझे फिर से सुनाना. और पूछना मुझसे कि हुआ कुछ ऐस...
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मु्झे देखिए, परखिए और पंसद आने पर चुन लीजिए, आप लगा सकते है मेरी बोली, अरे घबराएं नहीं, यदि आप पुरुष हैं तो कतई नहीं, मेरी बोली आपकी जेब पर ...
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जिसे कहने के लिए, तुम्हारा इंतज़ार था, वो बात कहीं छूट गई है। जिसके सिरहाने सर रखकर सोने को मैं, बेकरारा थी, वो रात कहीं टूट गई है। अतृप्त...
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रोज देखती हूं एक निरक्षर हाथों का जोडा दिल्ली की हर रेड लाइट पर बेच रहा होता है साक्षरता का पहला ‘अक्षर’ इस जोडे को शायद जमा घटा का ज्ञान न...
10 टिप्पणियां:
बहुत खूब, लाजबाब !
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
कम शब्दों में सुन्दर अभिव्यक्ति
अनगढे को गढने वाला कोई कुशल शिल्पकार होना चाहिए.
वाह...अनूठी कल्पना है.
gaagar me saagar....
काश ! कि वो पहला अक्षर भी लिखा होता !
काश ! कि वो पहला अक्षर भी लिखा होता !
मुझे तो इसमें भी वेदना ही नज़र आ रही है, अपने अस्तित्व को तलाशती एक औरत, जो अपनी खुद की एक अलग पहचान चाहती है!
srishti ke rahsyamayi padarth, jo aaj bhi ansuljha hai ,ke sanrakshan samvardhan, ke liye samaj jimmedar hai,
jisamen ham ,aap , rahate hain . aapko shikayat ,naitikata se maryada se hai .
mukarata ka prayas prasansniya hai .aur unmukatata,maryada men nahin aati ."satyam bruyat ,priyam bruyat na bruyat........] .bhavnaon ke nihitarth
sadhuvadji.
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