मंगलवार, 23 अगस्त 2011

ओह मेरे सूनेपने...


ओह मेरे एकाकीपन,
ओह मेरे सूनेपने...
अब लगता है कि बहुत हुआ,
बहुत हुआ ये दीवानापन,
बहुत हुआ स्‍नेह,
प्रेम और सहवास,
जी भर गया अब
इन दूषित हो चुके भावों से,
जी है कि जूझा जाए
फिर इनके आभावों से,
मन है कि नष्‍ट हो जाए,
संपूर्ण सृष्टि,
शेष बचूं मैं और मेरा अकेलापन,
ओह मेरे एकाकीपन...
ओह मेरे सूनेपने...

14 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

मन की शशक्त अभिव्यक्ति, कहने के लिए भी साहस चाहिए , इस अदम्य साहस के लिए बधाई

vandana gupta ने कहा…

ओह ॥………मन के कोमल भावो का सुन्दर चित्रण्।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

शेष बचूं मैं और मेरा अकेलापन,
ओह मेरे एकाकीपन...
ओह मेरे सूनेपने...

बहुत ही बढ़िया।

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कल 25/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Anupama Tripathi ने कहा…

sunder bhav abhivyakti...
badhai.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

एकाकीपन गीत सृजन का तत्व हुआ
इसीलिये एकाकी से अपनत्व हुआ.

कोमल रचना.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति

prerna argal ने कहा…

बहुत सुंदर भावों से लिखी शानदार अभिब्यक्ति /बधाई आपको /





please visit my blog.thanks.
www.prernaargal.blogspot.com

रेखा ने कहा…

सार्थक अभिव्यक्ति ..

काव्य संसार ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव और बहुत सुन्दर रचना |
मेरे भी ब्लॉग में आयें |
मेरी कविता
और इस नए सामूहिक ब्लॉग में भी आयें |
काव्य का संसार

अनिल त्यागी ने कहा…

अनीता जी , बहुत लंबे अंतराल से तुमारा कोई पोस्ट नहीं मिला पढ़ने को. बहुत सुंदर लिखती हैं आप.

आशीष "अंशुमाली" ने कहा…

जी भर गया अब
इन दूषित हो चुके भावों से,
जी है कि जूझा जाए
फिर इनके आभावों से
... 'जी' का उपयोग बहुत खूबसूरती से दो बार किया गया है। 'जी है कि जूझा जाए.. अप्रतिम।

SANDEEP PANWAR ने कहा…

बेहद ही अच्छी प्रस्तुति

tips hindi me ने कहा…

"टिप्स हिंदी में" ब्लॉग की तरफ से आपको नए साल के आगमन पर शुभ कामनाएं |

टिप्स हिंदी में

संजय भास्‍कर ने कहा…

प्रशंसनीय रचना - बधाई
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