
ओह मेरे एकाकीपन,
ओह मेरे सूनेपने...
अब लगता है कि बहुत हुआ,
बहुत हुआ ये दीवानापन,
बहुत हुआ स्नेह,
प्रेम और सहवास,
जी भर गया अब
इन दूषित हो चुके भावों से,
जी है कि जूझा जाए
फिर इनके आभावों से,
मन है कि नष्ट हो जाए,
संपूर्ण सृष्टि,
शेष बचूं मैं और मेरा अकेलापन,
ओह मेरे एकाकीपन...
ओह मेरे सूनेपने...
14 टिप्पणियां:
मन की शशक्त अभिव्यक्ति, कहने के लिए भी साहस चाहिए , इस अदम्य साहस के लिए बधाई
ओह ॥………मन के कोमल भावो का सुन्दर चित्रण्।
शेष बचूं मैं और मेरा अकेलापन,
ओह मेरे एकाकीपन...
ओह मेरे सूनेपने...
बहुत ही बढ़िया।
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कल 25/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
sunder bhav abhivyakti...
badhai.
एकाकीपन गीत सृजन का तत्व हुआ
इसीलिये एकाकी से अपनत्व हुआ.
कोमल रचना.
सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर भावों से लिखी शानदार अभिब्यक्ति /बधाई आपको /
please visit my blog.thanks.
www.prernaargal.blogspot.com
सार्थक अभिव्यक्ति ..
बहुत सुन्दर भाव और बहुत सुन्दर रचना |
मेरे भी ब्लॉग में आयें |
मेरी कविता
और इस नए सामूहिक ब्लॉग में भी आयें |
काव्य का संसार
अनीता जी , बहुत लंबे अंतराल से तुमारा कोई पोस्ट नहीं मिला पढ़ने को. बहुत सुंदर लिखती हैं आप.
जी भर गया अब
इन दूषित हो चुके भावों से,
जी है कि जूझा जाए
फिर इनके आभावों से
... 'जी' का उपयोग बहुत खूबसूरती से दो बार किया गया है। 'जी है कि जूझा जाए.. अप्रतिम।
बेहद ही अच्छी प्रस्तुति
"टिप्स हिंदी में" ब्लॉग की तरफ से आपको नए साल के आगमन पर शुभ कामनाएं |
टिप्स हिंदी में
प्रशंसनीय रचना - बधाई
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पर आपका स्वगत है
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