ईश्वर का ईश्वर...
कल यकायक जब मन घबरा उठा,तो मैं सीधें पहुंची मंदिर की दहलीज पर,
नमन कर कहा ईश्वर से...
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मेरे सृजनकर्ता,
परमपिता, पालनहार,
सुन लो मेरी गुहार,
संकट काटो मेरा,
मुझे जन्म दिया है तो,
हर दुख हर लो मेरा...
मैं तुम्हारी कृति हूं,
खो चुकी अपनी धृति हूं...
यह कह, श्रृद्धा से जब
नम आंखों को जब किया बंद,
यकायक कहीं से सुना एक स्वर मंद...
दबा-दबा सा स्वर कह रहा था,
तुम... तुम, तुम ही तो हो मेरी सृजनकर्ता,
भला मैं कैसे हुआ तुम्हारा दुखहर्ता,
मैंने तुम्हारा नहीं,
तुमने मेरा सृजन किया है,
तुम... हां मानव, तुम ही तो हो,
मुझे उत्पन्न करने वाले,
गढ़ कर पूजने वाले...
और मेरे अस्तीत्व को बेवजह परमपिता,
मां कह खुद पर मंढने वाले,
सुनो, मुझ पर यूं ही अपनी कृपा बनाए रखना,
मेरा अस्तित्व तुमसे है,
यह बात कभी न विसरना,
मेरी कृपा पर तुम नहीं,
तुम्हारी कृपा पर मैं जीवित हूं...
देते रहना मुझे यूं ही नियमित,
तुम्हारे डर और भावनाओं का आहार,
ताकि मैं कर सकूं जीवित विहार,
...
अंत में,
हे मानव,
मेरा नमन करो स्वीकार,
क्योंकि तुम ही तो हो,
हां, तुम ही तो हो मेरे पालन हार...
अनिता शर्मा
7 टिप्पणियां:
behtreen aur sarthak post....
बेहतरीन शब्दों का चयन...... शब्दों की जादूगरी तो कोई आपसे सीखे..... अति सुंदर.....
बहूत ही बेहतरीन है Mam.
and हमेशा ऐसे ही लिखते रहियेगा।
Thank you
शुक्रिया
शुक्रिया
शुक्रिया
शुक्रिया
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