ठीक सामने एक संदूक पर,
सिल्वटों भरी मेरी पेंट पडी है
उपर हैंगर पर एक चाइनीज जींच टंगी है,
दो दीवारों पर टिका एक टांड भी है
जिसमें न जाने क्या क्या भरा है
टांड पर पुरानी साडी का परदा
और उसके ठीक नीचे एक डबलडोर फ्रिज रख है
साथ में एक गेंहू की टंकी
तनी खडी है षायद किसी अकड में है
साथ ही सटी है पूजा की अलमारी
जिस पर परदा लगा है
श ssss षायद भगवान सो रहे हैं
इसके नीचे रखी है सिलाई मषीन
और तितर बितर पडे धागे
एक केंडल स्टेंड और
डाइनिंग टेबल सेट की एक कुर्सी
कुल मिलकार पता चलता है
कि मैं
एक मध्यवर्गीय परिवार से हूं
रास्ते कहीं खत्म नहीं होते, हम एक बार अपनी मंजिल को छू लें,लेकिन ये भी सच है कि एक रास्ता पार होते ही दूसरी राह बाहें फैलाए हमारा स्वागत करने को तैयार होती है। बस देर इस बात की है कि हम जो मंजिल पा चुके है उसका मोह त्याग कर नए रास्ते को अपना लें...
बुधवार, 25 मार्च 2009
मैं और मेरा कमरा...
मैं जमीन पर पडे एक गूदड पर रजाई लिए बैठी हूं
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ...
जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम किस्से मुझे फिर से सुनाना. और पूछना मुझसे कि हुआ कुछ ऐस...
-
मु्झे देखिए, परखिए और पंसद आने पर चुन लीजिए, आप लगा सकते है मेरी बोली, अरे घबराएं नहीं, यदि आप पुरुष हैं तो कतई नहीं, मेरी बोली आपकी जेब पर ...
-
जिसे कहने के लिए, तुम्हारा इंतज़ार था, वो बात कहीं छूट गई है। जिसके सिरहाने सर रखकर सोने को मैं, बेकरारा थी, वो रात कहीं टूट गई है। अतृप्त...
-
अकसर देखती हूं, राहगीर, नातेरिश्तेदार और यहां तक कि मेरे अपने दोस्तयार... उन्हें घूरघूर कर देखते हैं, उन की एक झलक को लालायित रहते हैं... -...
9 टिप्पणियां:
कुल मिलकार पता चलता है
कि मैं
एक मध्यवर्गीय परिवार से हूं
kamre ka vivaran aur bhav dono sunder
मैं नहीं जानती थी की क्या और किसे कहूँ
कि काया के अंदर .......एक आसमान होता है
और उसकी मोहबत का तकाजा
वह कायनाती आसमान का दीदार
पर बादलों की भीड़ का यह जो फ़िक्र था
यह फ़िक्र उसका बही ...मेरा था
दिलचस्प !
ultimate...superb....daad deta hoon
बड़ा खूब खाका खींचा है आपने मध्यम-वर्ग के काल्पनिक चित्र का....यह वैसे ही मुझे भा गया....जैसा की मैं खुद हूँ....!!
Waah!
bhut acche rachna
haan shayad yahi madhayam vargiya pariwar ki kahani hai jise aapne bakhubi shbdon ka roop diya hai.
Sparshi rachana hai.
Navnit Nirav
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ..पहली नज़्म पढने के बाद ये मुमकिन ही नहीं हुआ की कहीं और जाऊं तो नेक्स्ट पर क्लिक खुद बा खुद हो गया......... और ये भी एक दिलचस्प रचना.....
एक टिप्पणी भेजें