बुधवार, 25 मार्च 2009

मैं और मेरा कमरा...

मैं जमीन पर पडे एक गूदड पर रजाई लिए बैठी हूं

ठीक सामने एक संदूक पर,
सिल्वटों भरी मेरी पेंट पडी है
उपर हैंगर पर एक चाइनीज जींच टंगी है,
दो दीवारों पर टिका एक टांड भी है
जिसमें न जाने क्या क्या भरा है
टांड पर पुरानी साडी का परदा
और उसके ठीक नीचे एक डबलडोर फ्रिज रख है
साथ में एक गेंहू की टंकी
तनी खडी है षायद किसी अकड में है
साथ ही सटी है पूजा की अलमारी
जिस पर परदा लगा है
श ssss षायद भगवान सो रहे हैं
इसके नीचे रखी है सिलाई मषीन
और तितर बितर पडे धागे
एक केंडल स्टेंड और
डाइनिंग टेबल सेट की एक कुर्सी
कुल मिलकार पता चलता है
कि मैं
एक मध्यवर्गीय परिवार से हूं

अनिता शर्मा 

9 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

कुल मिलकार पता चलता है
कि मैं
एक मध्यवर्गीय परिवार से हूं
kamre ka vivaran aur bhav dono sunder

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

मैं नहीं जानती थी की क्या और किसे कहूँ
कि काया के अंदर .......एक आसमान होता है
और उसकी मोहबत का तकाजा
वह कायनाती आसमान का दीदार
पर बादलों की भीड़ का यह जो फ़िक्र था
यह फ़िक्र उसका बही ...मेरा था

डॉ .अनुराग ने कहा…

दिलचस्प !

अनिल कान्त ने कहा…

ultimate...superb....daad deta hoon

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

बड़ा खूब खाका खींचा है आपने मध्यम-वर्ग के काल्पनिक चित्र का....यह वैसे ही मुझे भा गया....जैसा की मैं खुद हूँ....!!

Amit K Sagar ने कहा…

Waah!

उम्मीद ने कहा…

bhut acche rachna

नवनीत नीरव ने कहा…

haan shayad yahi madhayam vargiya pariwar ki kahani hai jise aapne bakhubi shbdon ka roop diya hai.
Sparshi rachana hai.
Navnit Nirav

बेनामी ने कहा…

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ..पहली नज़्म पढने के बाद ये मुमकिन ही नहीं हुआ की कहीं और जाऊं तो नेक्स्ट पर क्लिक खुद बा खुद हो गया......... और ये भी एक दिलचस्प रचना.....

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जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम कि‍स्से मुझे फि‍र से सुनाना. और पूछना मुझसे क‍ि हुआ कुछ ऐस...