तुझे भूलने की हर कोशिश में नाकाम हो जाती हूं
तुझे भूलते भूलते तुझमें ही कहीं खो जाती हूं मैं
हर वक्त तेरी यादों पे मिट~टी डाल देती हूं
पर अगले ही पल उसकी छांव में खुद को सोया हुआ पाती हूं मैं
खंजर ए जुदाई को सिने से निकाल देती हूं,
पर अगले ही पल खुद को लहूलुहान पाती हूं मैं
दूर होकर भी छीपा है तू मुझमें ही कहीं
हर वक्त तेरी सांसों की आहट से सिहर जाती हूं मैं
घर की दीवारों से बातें किया करती हूं
सपनों की हकीकत में कहीं एक जिंदगी जी जाती हूं मैं
रोज तेरे ख्वाबों की उम्मीद लिए सोती हूं
पर उठने पर ख्वाबों के तिनकों को बिखरा पाती हूं मैं
सोचती हूं दरवाजे पर दस्तक दी है तुने
पर बाहर जाने पर बस तेरी उम्मीद को खडा पाती हूं मैं
अनिता शर्मा
रास्ते कहीं खत्म नहीं होते, हम एक बार अपनी मंजिल को छू लें,लेकिन ये भी सच है कि एक रास्ता पार होते ही दूसरी राह बाहें फैलाए हमारा स्वागत करने को तैयार होती है। बस देर इस बात की है कि हम जो मंजिल पा चुके है उसका मोह त्याग कर नए रास्ते को अपना लें...
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5 टिप्पणियां:
अनीता जी,अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं। बधाई।
सोचती हूं दरवाजे पर दस्तक दी है तुने
पर बाहर जाने पर बस तेरी उम्मीद को खडा पाती हूं मैं
मैंने दिल से कहा ...ढूढ़ लाना ख़ुशी ....न समझ ...लाया गम ...तो मैं गम ही सही
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
ये रीतापन ही तो जीवन है. जिस दिन भर जायेंगे उस दिन मर जायेंगे.
रोज तेरे ख्वाबों की उम्मीद लिए सोती हूं
पर उठने पर ख्वाबों के तिनकों को बिखरा पाती हूं मैं
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बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. सशक्त
truly brilliant..
keep writing......all the best
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