बुधवार, 30 दिसंबर 2009

स्मृति विहंग

जब कभी
इस विहड़ नीड़ पर
फडफड़ा उठता है
तुम्हारी स्मृति का
चिर-आयु विहंग
उठती है
जाने कैसी विस्मृत सी
दुर्लभ सुगंध...
अकसर जब सांसे
मांगा करती हैं
तुम्हारी सांसों का वही अवैध स्पर्श...
जाने क्यूं हृदय हो उठता है
उन पर
यकायक ही बेहद कर्कष
चुपके से नयनों में
नींद लिए बैठी आंखें
अकसर भूले से
सो भी जाया करती हैं
पर अभागिन
नींद कहां कभी पाया करती हैं
विपुल राग ही बजा करते हैं
होठों की विणा पर
तुम ही कहो मिलन के गीत
गाऊं तो क्योंकर ?
भोगा मेरे हर रस को तुमने
रोद्र रस ही न किया तनिक भी स्पर्श
बतलाओं तो देकर जरा जिव्हा को कष्ट
इस निरस टूटे तारे को अब
भला कौन अपनाएगा सहर्ष...
अनिता शर्मा

12 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं.......बहुत सुन्दर रचना है......

भोगा मेरे हर रस को तुमने
रोद्र रस ही न किया तनिक भी स्पर्श
बतलाओं तो देकर जरा जिव्हा को कष्ट
इस निरस टूटे तारे को अब
भला कौन अपनाएगा सहर्ष...

Himanshu Pandey ने कहा…

पहली बार आया हूँ आपके चिट्ठे पर । सजीवता देखी है आपके यहाँ रचना की । बोलती अभिव्यक्त होती रचना दिखी ! आभार ।

इनका सौन्दर्य निरख रहा हूँ -
"विपुल राग ही बजा करते हैं
होठों की विणा पर
तुम ही कहो मिलन के गीत
गाऊं तो क्योंकर ?"

इलाहाबादी अडडा ने कहा…

वेदना की सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति

उम्दा सोच ने कहा…

सुन्दर रचना !

aarya ने कहा…

सादर वन्दे!
सुन्दर !

Udan Tashtari ने कहा…

भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!


यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

श्यामल सुमन ने कहा…

वेदना की सटीक अभिव्यक्ति। सुन्दर प्रवाह।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Syed ने कहा…

सुन्दर !!

बेनामी ने कहा…

एक आस लिए जीती हूं, एक प्‍यास जिसे पीती हूं, न जाने क्‍यूं, मन में एक विश्‍वास लिए हूं,
.......................

"इस विहड़ नीड़ पर
फडफड़ा उठता है
तुम्हारी स्मृति का
चिर-आयु विहंग"
....
विपुल राग ही बजा करते हैं
.....
इस निरस टूटे तारे को अब
भला कौन अपनाएगा सहर्ष...

ब्लॉग, कविता के शब्द और भाव - अति सुंदर वो भी "इतनी छोटी उम्र में" हार्दिक शुभकामनाएं

Unknown ने कहा…

are ab bas karo Aneeta. Itana dard lekar kaha jaogi.

नीरज कुमार ने कहा…

बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं...

D.P. Mishra ने कहा…

BAHUT HE SUNDAR........

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