
तुम्हारी यादें...
मसिक धर्म सी
तकलीफ के साथ साथ
देती हैं नारित्व का अहसास।
तुम्हारी अनु
मसिक धर्म सी
तकलीफ के साथ साथ
देती हैं नारित्व का अहसास।
तुम्हारी अनु
रास्ते कहीं खत्म नहीं होते, हम एक बार अपनी मंजिल को छू लें,लेकिन ये भी सच है कि एक रास्ता पार होते ही दूसरी राह बाहें फैलाए हमारा स्वागत करने को तैयार होती है। बस देर इस बात की है कि हम जो मंजिल पा चुके है उसका मोह त्याग कर नए रास्ते को अपना लें...
जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम किस्से मुझे फिर से सुनाना. और पूछना मुझसे कि हुआ कुछ ऐस...
9 टिप्पणियां:
WESE ME AAP KE DIL KE JAJBAT KO NAHI SAMJH PAHUNGA FIR BHI
SABHDO KA JOD ACHA HE
http://kavyawani.blogspot.com/
SHEKHAR KUMAWAT \\\
मासिक धर्म का तो धर्म है हर माह तकलीफ देना। परंतु बहुत से तो चाहकर भी इस मर्म को नहीं पा पाते हैं। पता नहीं नारीत्व के मर्म को मासिक धर्म से क्यों जोड़ा गया है, इसके अतिरिक्त भी स्नेह, ममता, सहनशीलता जैसे भाव भी तो नारी धर्म की पूरी व्याख्या करते हैं।
kam shabdon me hi aapne bhav pagat kar diya. achhi kavita.
सुन्दर एहसास नया प्रयोग्
Mashik chakra , Jeewan ka chakra hai , isiliy dharm hai.
बहुत खुब !
शब्द आपके अपने है, हमें तो सिर्फ भाव समझना है, बहुत वेदना है, किसी की यादों से होती तकलीफ और कहीं ना कहीं सुकून भी है!
bebas naari ke dard ka ..... bahut alag sa varanan
bhut sunder kaafi gahraai se mahsus kiya hi is dard ko
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