रास्ते कहीं खत्म नहीं होते, हम एक बार अपनी मंजिल को छू लें,लेकिन ये भी सच है कि एक रास्ता पार होते ही दूसरी राह बाहें फैलाए हमारा स्वागत करने को तैयार होती है। बस देर इस बात की है कि हम जो मंजिल पा चुके है उसका मोह त्याग कर नए रास्ते को अपना लें...
शुक्रवार, 30 मार्च 2012
मां, तू बहुत याद आती है...
मां, तू बहुत याद आती है...
ठीक सुबह की नींद सी मीठी तेरी याद,
अक्सर रात को नींद न आने वाला दर्द बन जाती है...
मां, तू बहुत याद आती है,
पलकों के झपकने के नित्यकर्म में,
जैसे कभी आंखों में कुछ गिरने पर,
वो फड़फड़ा जाती हैं,
मां, तू बहुत याद आती है...
खाली प्रेम पत्र सा है तेरा नेही हृदय,
न जताने पर अपार संभावनाओं से भरा,
लेकिन जब जताती है,
तो पन्नों की कमी पड़ जाती है...
मां, तू बहुत याद आती है...
अनिता शर्मा
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ...
जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम किस्से मुझे फिर से सुनाना. और पूछना मुझसे कि हुआ कुछ ऐस...
-
जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम किस्से मुझे फिर से सुनाना. और पूछना मुझसे कि हुआ कुछ ऐस...
-
वक्त-बेवक्त, हर वक्त, इंतजार रहता है, उंगलियों के पोरवों पर, हवा सा यार रहता है, वो रातें महसूस होती हैं लबों के सिरों पर, सिलवटों का...
-
कागज पर खाली रेखाओं से बिखरे तुम कभी कभी मेरे लिखने का आधार बन जाते हो... होठों पर आड़ी तिरछी लकीरों से चिपके तुम कभी सहसा... मुझे छूकर चले ...
8 टिप्पणियां:
बहुत ही बढ़िया
सादर
माँ के लिए जितना भी लिखा जाए कम है ... अच्छी रचना
bahut khoob...
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
Best hai.. likhna band na karen.. and ap hamare blog par jarur visit kijyga..
www.hamarisafalta.blogspot.in
Thanks again
शुक्रिया
शुक्रिया संगीता जी
शुक्रिया संगीता जी
एक टिप्पणी भेजें