गुरुवार, 19 जुलाई 2018

तूफां

जि‍से शहर भर में तलाशती रही रूह,
वो आवारगी कहीं रगों में दौड़ती सी थी...

उसे कहां खबर थी, है दीवानगी हवाओं में,
जो बेतकल्लुफ हो लबों से नि‍गाहें प्यासी जा लगी थीं.

कहां था अंदाजा क‍ि ये जुनूं जला देगा आंचल सुर्ख शाम का,
क‍ि ये प्यास ले डूबेगी समंदर को भी...

इस पर भी कुछ यूं करीब से गुजर गया वो कम्बख्त,
जैसे गुजरा हो कोई तूफां चुपचाप सा तबाही कर बस अभी-अभी...

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जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ...

जब कभी तुम जिंदगी से थक जाओ, तो मेरे पास आना... बैठना घड़ी भर को संग, वो तमाम कि‍स्से मुझे फि‍र से सुनाना. और पूछना मुझसे क‍ि हुआ कुछ ऐस...