
उंगलियों के पोरवों पर, हवा सा यार रहता है,
वो रातें महसूस होती हैं लबों के सिरों पर,
सिलवटों का तो सिलसिला ही बेहिसाब रहता है,
लकीरों सा बिछा है हाथों में कहीं, पढ़ने को मन बेकरार रहता है,
वो चला गया कहकर कि अभी आता हूं,
पर फिर भी वक्त-बेवक्त, हर वक्त, इंतजार रहता है...
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