कुछ तो है जो तुम अंदर ही अंदर बुनते हो...
सुनों,
टूटे तारे से बना वो रौशन सा रेश्मी स्पर्श लिए,
वो खुद-ब-खुद आते हैं या तुम ही ख्वाबों को कहीं फूलों से चुनते हो...
सांस में उतर रहे हो किसी लत से,
ये अदा है या मुझमें कहीं चुपचाप किसी धूंए से घुलते हो...
बताओ तो जरा,
पर्दा लाख किया था हमने तुमसे,
फिर तुम बेपर्दा हो? या चुपके-चुपके इन पर्दों से भी मिलते हो...
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