क्या सौंप सकते हो उसे अपने मन का मनका,
जिससे कोई वास्ता न हो तन का...
क्या जी सकते हो उसके बेतुके, बेमतलब जंजालों में,
क्या खो सकते हो उसके उलझे-सुलझे बालों में...
क्या रह सकते हो उसके कच्चे मन के अंदर,
क्या तैर सकते हो भावनाओं में जैसे अनंत समंदर...
क्या उड़ सकते हो बिन पंख उसकी कल्पनाओं के गगन में,
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